Saturday, December 15, 2012

जीतन मरांडी इस देश की अदालतों की पराजय का जीता जागता सबूत है


अपर्णा मरांडी एक आदिवासी महिला हैं . वह झारखण्ड में रहती हैं . उनके पति का नाम जीतन मरांडी है . उनके पति जीतन मरांडी गायक और कवि हैं . वह आदिवासियों के विस्थापन और उन पर होने वाले सरकारी ज़ुल्म के खिलाफ गीत गाता था . जीतन मरांडी को चार साल पहले पुलिस ने पकड कर जेल में डाल दिया . पुलिस ने उस पर हत्या का केस बनाया . जिला अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी . सारे देश में हंगामा हुआ . बाद में झारखण्ड हाई कोर्ट ने भी स्वीकार किया कि यह तो दूसरा जीतन मरांडी है और जिसे पुलिस उस हत्याकांड में ढूंढ रही है वह असल में दूसरा जीतन मरांडी है . हाई कोर्ट ने जीतन मरांडी को आज़ाद करने का हुक्म दिया . लेकिन पुलिस अपनी बेईज्ज़ती कैसे होने देती . पुलिस ने जीतन मरांडी को आज़ाद नहीं किया . पुलिस ने बहाना बनाया कि यह जीतन मरांडी गुंडा है इस लिये हम इसे नहीं छोड़ेंगे .जबकि पुलिस ने कभी नहीं बताया कि जीतन मरांडी अगर गुंडा है तो उसने क्या गुंडागर्दी करी ? जीतन मरांडी आज भी जेल में है . जीतन मरांडी इस देश की अदालतों की पराजय का जीता जागता सबूत है . 

अपने पति की अवैध हिरासत के बारे में लोगों को बताने के लिये अपर्णा मरांडी हर तरह से कोशिश कर रही है . वह सभाओं में बोलती है . पिछले हफ्ते अपर्णा मरांडी अपने पति जीतन मरांडी के साथ हो रहे अत्याचार के बारे में बोलने के लिये हैदराबाद एक सभा में जा रही थी. झारखण्ड की पुलिस डर रही थी क्योंकि वह गलती पर गलती कर रही थी . पुलिस चाहती थी कि कोई भी खबर बाहर ना जाए . लेकिन अपर्णा सब जगह जाकर सबको सच्चाई बता रही थी . पुलिस ने ने घबरा कर अपर्णा का रेलवे स्टेशन से अपहरण कर लिया . कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपर्णा के गायब होने की खबर मिल गयी . खबर फ़ैल गयी पुलिस को स्वीकार करना पड़ा कि अपर्णा पुलिस के पास है . पुलिस ने अपर्णा को आठ साल पुराने एक मामले में फर्जी तरीके से फंसा कर एक फर्जी मुकदमा भी बना दिया . 



अपर्णा मरांडी अब जेल में है . यह बहुत शर्मनाक हालत है. भारत खुद को महान राष्ट्र कहता है . लेकिन अपने देश के आदिवासियों को सता रहा है . यह किसी भी लोकतांत्रिक देश में नहीं किया जा सकता . इसलिये जिन्हें भारत के लोकतन्त्र और भारत के सम्मान की चिन्ता है उन्हें आदिवासियों पर होने वाले इन अत्याचारों को रोकने की मांग करनी चाहिये . अगर हम नहीं बोलते तो इसका मतलब है हम सरकार के इन अत्याचारों का समर्थन करते हैं . आज अगर हम आदिवासियों को मार देंगे तो मरने की अगली बारी हमारे देश के किसानों की आयेगी . इस तरह हम बारी बारी समाज में जो भी कमजोर है उसे समाप्त करते जायेंगे . और एक दिन पूरी मानव सभ्यता समाप्त हो जायेगी . 

 हमें इसके बारे में आज ही आवाज़ उठानी चाहिये . इतना बड़ा अत्याचार हम चुपचाप कैसे सहन कर सकते हैं ? अगर हम चुप रहेंगे तो सरकार को चला रहे क्रूर व्यापारियों की हिम्मत बढ़ जायेगी और कल को वो हम पर भी हमला कर देंगे . उस समय हमारे बारे में भी बोलने वाला कोई नहीं बचेगा क्योंकि तब तक चुप रहना हमारी आदत बन जायेगी . 

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