Wednesday, December 19, 2012

मशीनों का क्या समाज ?


बस्तर में बलात्कार नहीं होते . बस्तर के गाँव में में पुलिस भी नहीं नहीं होती .
शहरों में पुलिस भी होती है और शहरों में रोज बलात्कार भी होते हैं . 
इससे एक बात तो साफ़  है पुलिस बलत्कार नहीं रोक सकती 
समाज रोक सकता है 

बस्तर में एक समाज है 
बस्तर में जो कुछ भी होता है उस पर समाज की नजर होती है 
वहाँ कोई भी समाज की मान्यताओं के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता 

हमने बड़े उद्योग खड़े किये 
उसके लिये बड़ी संख्या में कारखाने कार्यालय दुकाने खोली गयीं 
उसके लिये मजदूर ,और कर्मचारी आकर आसपास आकर बसते गये  
इस तरह बड़े शहर बनते गये 

अलग तरह के लोग अलग संस्कृतिया 
अलग अलग आर्थिक स्तर 
आपस में मिलना जुलना लगभग समाप्त हुआ 
हम बस व्यक्ति बन गये 
जिसका कोई समाज नहीं है 

बस मेरी ज़रूरतें और उसके लिये मेरा व्यक्तिगत प्रयत्न 
बस इतने में ही हम सिकुड़ते गये 
जीवन बस व्यक्ति और परिवार तक सीमित हो गया 

एक दूसरे के साथ सारे सम्बन्ध बस आर्थिक हो गये 
जिससे कोई आर्थिक हित नहीं उससे हमारा कोई सम्बन्ध भी नहीं 
हम शहर में बस पैसा कमाने आये थे 

अब बस हमारे दो ही काम हैं 
पैसा कमाना और पैसा खर्च करना 

हम लगभग मशीन बन गये हैं 
सिर झुका कर काम करो 
कमाओ खाओ कमाओ खाओ 
कमाओ खाओ कमाओ खाओ 

मशीनों का क्या समाज ?
क्या इज्ज़त ?
क्या बेईज्ज़ती ?

लेकिन पिक्चर अभी बाकी है दोस्त 
जब हमारे सारे गावों पर 
हमारे सारे खेतों पर 
हमारे सारे जंगलों पर 
इन पैसे वालों 
का कब्ज़ा हो जायेगा 
जब हम नौकरी की आस में अपनी ज़मीने जंगल और गाँव 
इन पैसे वालों को सौंप देंगे और शहरों में रहने आ जायेंगे 
तब ये मशीनों से खेती करेंगे 
मशीनों से कारखाने चलाएंगे 

तब हमारे पास ना खेत होगा ना नौकरी 
तब भूख फैलेगी 
तब इंसान बस एक गोश्त का लोथड़ा होगा 
जिसकी कोई कीमत नहीं होगी 
तब औरत की गरिमा 
आदि शब्द कहीं अतीत की बातें लगेंगी 

अभी तो शुरुआत है यह 
इस आगत असामाजिकरण की 
रोक सको तो रोक लो 

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