Sunday, May 19, 2013

आदिवासियों का एड्समेट्टा जनसंहार


छत्तीसगढ़ के बीजापुर में फिर से आठ आदिवासियों को पुलिस ने मार डाला है . सभी गाँव वाले थे . पुलिस ने भी इनके माओवादी होने का दावा नहीं किया है .

ये सभी आदिवासी अपनी नई फसल की बुआई से पहले बीज की पूजा कर रहे थे .आपको याद होगा पिछले साल भी इसी समय बीज की पूजा करते हुए सत्रह निर्दोष आदिवासियों की इसी तरह हत्या कर दी गई थी . तब सरकार ने दावा किया था कि मारे गये लोग दुर्दांत माओवादी थे . लेकिन बाद में साबित हुआ कि वे तो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे और गाँव वाले थे .

आदिवासी इलाकों में आदिवासियों की सामूहिक हत्या एक सरकारी योजना के तहत की जाती हैं . इनका पहला उद्देश्य आदिवासियों के ऊपर सरकारी दबदबे को जमाने का होता है . सरकार और उस इलाके में काम करने वाले उद्योगपति नहीं चाहते कि आदिवासी कभी भी उनका विरोध करने का साहस करें . इसलिये बीच बीच में उद्योगपति सरकार के साथ मिल कर आदिवासियों की सामूहिक हत्या की घटना कर देते हैं . इस तरह की हत्याओं से आदिवासी समूह पर सरकारी आतंक फैलाने  की योजना होती है .

हमने दंतेवाड़ा में अनेकों जनसंहार देखे हैं . इन में से सभी में आदिवासियों ने कभी पुलिस को किसी भी तरह से नहीं उकसाया . लेकिन पुलिस ने बिना किसी उकसावे के आदिवासियों का सामूहिक संहार किया है .

हांलाकि ध्यान से देखा जाय तो इस तरह के जनसंहार से सरकार को फायदा कम और नुकसान  ज़्यादा होता है . हम एक समाज हैं . समाज नियमों से चलता है . नियम समाज ने ही बनाये हैं .अगर सरकार नियम तोडती है तो उस पर से समाज का विश्वास कम हो जाता है . इस हालत में सरकार का विरोध करने वाली ताकतों के प्रति लोगों को अधिक सहानुभूति मिलने लगती है .

 मानवाधिकार कार्यकर्त्ता सदैव सरकार को यही सलाह देते हैं कि सरकार नियमों का पालन करे और जनता के बीच अपना विश्वास ना गंवाए . 

लेकिन अब सरकार जनता के बल पर नहीं बल्कि बाज़ार की शक्तियों के पैसे के दम पर चुनाव जीतती हैं. इसलिये सरकार को जनता की नहीं बल्कि खुद को पैसा देने वाले उद्योगपतियों की ज़्यादा परवाह है . 

इस हाल में जनता के कल्याण के नाम पर चुनाव जीतने वाली सरकार अपनी ही जनता को मारने लगती है .
इस सब से लोकतन्त्र का मूल ढांचा ही खतरे में पड़ जाता है . 

इसलिये हमें याद रखना चाहिये जब हम आदिवासियों की हत्या करते हैं तो दरअसल हम अपने लोकतन्त्र की हत्या कर रहे होते हैं . इसी के साथ अपनी संस्कृति , धर्म , परम्परा  और सम्मान की भी हत्या कर देते हैं .

असल में हम आदिवासियों के एक समुदाय के रूप में रहने से डरते हैं . इसलिये हम आदिवासियों को बिखेर देना चाहते हैं . ताकि एक समुदाय के रूप में सरकार का सामना करने की उसकी शक्ति को भी बिखेर दिया जाय .

हमारा यह काल आदिवासी समुदायों के विनाश के काल के रूप में जाना जाएगा . और हम इसके मौन साक्षी के रूप में दज किये जायेंगे . 

No comments:

Post a Comment