बस्तर के आदिवासियों ने पुलिस दमन और बदमाशी के विरुद्ध बड़ी जीत हासिल करी है .
दिनांक 20 नवम्बर को पुलिस ने गुरबे गांव की आदिवासी महिला के घर में घुस कर उसे उठा लिया .
शुक्रवार को आदिवासियों ने थाने में जाकर उस महिला के बारे में पता लगाया .
पुलिस ने आदिवासियों को कोई जवाब नहीं दिया .
शनिवार को पन्द्रह हज़ार आदिवासी अपना खाना पानी लेकर थाने के सामने डट गए .
पुलिस फिर भी बदमाशी पर अड़ी रही .
सोनी सोरी शनिवार की शाम महिला के परिवार जनों को लेकर सुकमा के पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर से मिलने गयी .
दोनों अधिकारियों ने महिला के परिवार और सोनी से मिलने से मना कर दिया .
पन्द्रह हज़ार आदिवासी ठण्ड में थाने के सामने रात भर डटे रहे .
इतवार को भी दिन भर आदिवासी थाने के सामने जमे रहे .
सोनी सोरी ने इतवार को फिर से अधिकारियों से मिलने की कोशिश करी .
कलेक्टर और एसपी उस दिन भी नहीं मिले .
कलेक्टर ने फोन पर सोनी से कहा कि आप अपना आवेदन एसडीएम् को दे कर जाइए .
सोनी ने एसडीएम् को बताया कि आज शाम तक अगर पुलिस ने महिला को आदिवासियों को नहीं सौंपा तो मैं आमरण उपवास शुरू करूंगी .
सोनी के पास एसडीएम का फोन आया कि आप शहर में ही रहिये शायद महिला अब मिल जायेगी.
शाम तक पुलिस ने सोनी को बुला कर महिला को सौंप दिया .
पुलिस ने झूठी कहानी मीडिया में फैलाई कि महिला रोकेल नामके एक गांव में मिली है .
इस पूरी घटना से हमें साफ़ साफ़ दिख रहा है कि सरकार और पुलिस द्वारा आदिवासियों के साथ किस तरह की बदमाशी भरी हरकतें की जा रही हैं .
सरकार चाहती है कि आदिवासियों को इतना डराया जाय कि आदिवासी अपनी ज़मीन चुपचाप उद्योगपतियों को सौंप दे और आदिवासी पुलिस का सामना करने की हिम्मत ही गँवा दे .
लेकिन इस बार आदिवासियों के जवाब से पुलिस ही भागती नज़र आयी है .
बस्तर के आदिवासियों की हिम्मत को सलाम .
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