Wednesday, February 11, 2015

आओ हमें भी जेल में डाल दो

मोदी सरकार सामाजिक संस्थाओं पर कार्यवाही करने की तैयारी कर रही है
कल हिन्दुस्तान टाइम्स के मुम्बई संस्करण में गृह मंत्रालय के दस्तावेजों के हवाले से खबर छापी गयी है
अखबार के पहले पन्ने पर छपी इस खबर में एमनेस्टी इंटरनेशनल , डाक्टर विदाउट बार्डर और हमारी दंतेवाड़ा की संस्था वनवासी चेतना आश्रम का भी इस सूची में नाम है .
अन्य नामों में पीयूसीएल , और ग्रीनपीस का भी नाम है .
मैं और मेरी पत्नी 1992 में जब दंतेवाड़ा गए थे तब हमने एक संस्था का गठन किया था . हमने अट्ठारह साल दंतेवाड़ा में काम किया .
आदिवासियों के मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के कारण सरकार ने हमारे संस्था के आश्रम पर बुलडोजर चला दिया था .
हमने पांच सौ से ज़्यादा मानवाधिकार हनन के मामले सर्वोच्च न्यायालय को सौंपे .
लेकिन सरकार ने हमारे द्वारा अदालत में ले जाए जाने वाले आदिवासियों का अपहरण कर लिया और पुलिस ने बलात्कार पीड़ित लड़कियों का दोबार अपहरण कर के थाने में ले जाकर पांच दिन तक दुबारा बलात्कार किया था .
मेरी हत्या की तैयारी कर ली गयी थी . मेरे साथियों को जेल में डाल दिया गया .
आदिवासियों के मामलों को अदलत में लड़ने के लिए खुद को जिंदा रखने के लिए मैंने और मेरी पत्नी ने 2010 में छत्तीसगढ़ छोड़ दिया था और दिल्ली आ गए थे .
जब तक मैं दंतेवाड़ा में था तब तक मुझ पर नक्सलियों के साथ सम्बन्ध होने का कोई मामला सरकार ने नहीं बनाया था .
क्योंकि हमारा काम इतना खुला और शानदार था कि सरकार को हमारे खिलाफ़ फर्ज़ी केस बनाने के कारण मुंह की खानी पड़ती .
दंतेवाड़ा छोड़ने के बाद मेरा नक्सलियों से सम्बन्ध होने की कोई सम्भावना नहीं थी . क्योंकि उसके बाद मैं कभी छत्तीसगढ़ नहीं गया .
दंतेवाड़ा छोड़ने के छह साल बाद अब जाकर मोदी सरकार को याद आ रहा है कि हमारी संस्था का नक्सलियों से संपर्क है ?
लेकिन असली बात दूसरी है .
सरकार को सब पता है कि हिमांशु का नक्सलियों से कोई सम्बन्ध नहीं है .
सरकार की परेशानी यह है कि हिमांशु की नज़र छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के सरकारी दमन पर है .
सरकार आदिवासियों की ज़मीन छीनना चाहती है .
आदिवासी ज़मीन छोडना नहीं चाहता .
सरकार आदिवासी को डराने के लिए औरतों से बलात्कार करती है .
निर्दोष आदिवासियों की बड़ी संख्या में हत्या करती है .
तब हम बोलते हैं .
सरकार को कोर्ट में घसीट लेते हैं .
यही सरकार की नाराजगी की वजह है .
सरकार हमें डरा कर चुप करवाना चाहती है .
सरकार चाहती है कि जब सरकार किसी आदिवासी महिला की योनी में पत्थर भरे तो हम चुप रहें .
सरकार चाहती है कि सरकार अगर आदिवासी बच्चों की हत्या करे तो हम यह मान लें कि वे सब बच्चे नक्सलवादी थे .
सरकार चाहती है कि हम मान लें कि अंकित गर्ग और कल्लूरी जैसे विकृत मस्तिष्क के सेक्स मैनियाक अधिकारी असल में राष्ट्र की रक्षा कर रहे हैं .
सरकार को दंतेवाड़ा से सूचनाएं तो अंकित गर्ग और कल्लूरी जैसे पुलिस अधिकारी ही रिपोर्ट भेजते हैं ना ?
तो अंकित गर्ग और कल्लूरी जैसे अधिकारी हिमांशु के बारे में क्या खबर दिल्ली भेजेंगे ? यही ना कि इस आदमी को यहाँ से हटाओ तभी हम आदिवासी को मार पाएंगे .
लेकिन हम नहीं हटेंगे .
हम बहुत अच्छे लोगों की संगत में रहते हैं .
हमारे संगी साथी वो हैं जिन्हें कभी किसी सत्ता ने ज़हर पिलाया था .
हमारे संगी साथी वो हैं जिन्हें किसी सत्ता ने सूली पर चढ़ा दिया था .
हम उसके संगी हैं जिसे तुमने तीन गोलियाँ मारी थीं .
आओ हमें भी जेल में डाल दो .
अगर सोनी सोरी ,
लिंगा कोडोपी ,
आरती मांझी ,
दयामनी बारला ,
अपर्णा मरांडी नक्सलवादी हैं तो हम खुले आम कह रहे हैं कि हम इनके समर्थक हैं
आओ
आदिवासियों का समर्थन करने के जुर्म में हमें भी जेल में सड़ा दो .
इससे ज़्यादा तुम कुछ नहीं कर सकते .
लेकिन हम चुप नहीं होंगे .
हम जब तक जिंदा हैं और जेल से बाहर हैं .
हम इन सभी भारतीय नागरिकों के सामान अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते रहेंगे .
क्योंकि अगर हमने एक भी नागरिक के अधिकारों की हत्या स्वीकार कर ली तो इसका अर्थ होगा कि हमने हर नागरिक के अधिकारों की हत्या स्वीकार कर ली है .
आपको अम्बानी और अदाणी के लिए भारत के गरीबों के ज़मीनों ,जंगलों पहाड़ों पर कब्ज़ा करना है .
यह हम अपनी जान रहते होने नहीं देंगे .

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