Saturday, September 24, 2011

अब मुझे फिर वापिस चाहिए अपना बनाया हुआ लोकतंत्र


मैंने अपने लिए बनाया था लोकतंत्र !
अपनी संसद ,
अपनी बेटी की रक्षा के लिए पुलिस,
अपनी अदालत, जिसमे मैं तुम्हे पेश कर दूं ,
जब भी मुझे गुस्सा आये तुम पर !
पर तुमने सब छीन लिया मुझ से !
अब ना संसद मेरी, ना पुलिस ना अदालत !
सब तुम्हारे !
अब मुझे फिर वापिस चाहिए अपना बनाया हुआ लोकतंत्र !
कहाँ से शुरू करूं?
क्या है मेरे सबसे नज़दीक ?
ओह ये तो तुम्हारी बंदूकें हैं ! जिन्हें तुमने मुझे मेरे लोकतंत्र से दूर रखने के लिए ,
मेरे घर के दरवाजे पर तैनात कर दिया है !
तो अपना लोकतंत्र वापिस लेने के लिए, मुझे भी मजबूरन शुरुआत करनी होगी
वहाँ से जो मेरे सबसे करीब है !
मेरे सब से करीब तुम्हारी बंदूकें हैं !
जल्दी से फैसला करो !
इससे पहले की मैं तुम्हारी सारी बंदूकें छीन लूं और फिर से कब्ज़ा कर लूं !
अपने लोकतंत्र पर !
आपके पास बस एक मिनिट है !
आपका समय शुरू होता है अब !

3 comments:

  1. अब ना संसद मेरी, ना पुलिस ना अदालत !
    सब तुम्हारे !
    अब मुझे फिर वापिस चाहिए अपना बनाया हुआ लोकतंत्र !
    इन्कलाब जिंदाबाद ---इन्कलाब जिंदाबाद ---इन्कलाब जिंदाबाद

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  2. जंहा आवाम के खिलाफ साजिशें हो शान से

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