आदरणीय मनमोहन सिंह जी,
मैं आपको ये खुला पत्र इसलिए लिख रहा हूँ ताकि देश को यह पता चल जाये कि देश के आदिवासी इलाकों को युद्ध में झोंकने के लिए कौन जिम्मेदार है! और आपने इस मामले में देश के साथ क्या क्या धोखा किया है | जब जब सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार व नक्सलियों के बीच शांति स्थापना की कोशिश की तो हर बार किस तरह आपने उसे नष्ट किया ? आपकी सरकार के गृह मंत्री पी० चिदम्बरम जो अनेकों व्यापारिक समूहों के पक्ष में सरकार के विरुद्ध मुकदमें लड़ते रहे और वेदांता नामक बदनाम कम्पनी के बोर्ड मेम्बर थे | इन्ही पी० चिदम्बरम ने नवम्बर २००९ में तहलका नामक पत्रिका में एक इंटरव्यू में कहा था कि "हाँ अगर कोई संस्था दंतेवाडा में जन सुनवाई का आयोजन करती है तो मैं वहाँ आदिवासियों की तकलीफें सुनने के लिए दंतेवाडा जाने को तैयार हूँ |" पी चिदम्बरम की इस घोषणा के बाद मैं, श्री चिदम्बरम से नवम्बर २००९ में दिल्ली में उनके निवास पर मिला, जहां हमारी लगभग ४५ मिनट अकेले में बातचीत हुई | इस बातचीत में चिदम्बरम ने मुझसे वादा किया मैं दंतेवाडा में सात जनवरी २०१० को एक जन सुनवाई का आयोजन करूँगा, जिसमें हिंसा से पीड़ित आदिवासी आयेंगे और श्री पी चिदम्बरम उसमें शामिल होकर आदिवासियों की तकलीफें सुनेंगे | मैंने इस मुलाकात में श्री चिदम्बरम को एक सी.डी. सौंपी थी जिसमें पुलिसकर्मियों द्वारा किये गये सामूहिक बलात्कार पीड़ित लड़कियों के बयान थे तथा सी आर पी एफ द्वारा डेढ़ साल के हाथ कटे बच्चे का चित्र व उसकी दादी द्वारा दिया गया घटना का विवरण भी था |
इसके बाद मैंने चिदम्बरम से कहा कि आप अपने आने का एक पत्र हमें भेज दे ताकि आपका कार्यक्रम पक्का मान लिया जाये | श्री चिदम्बरम ने मेरे हर फोन पर मुझे आश्वस्त किया कि वो ज़रूर आयेंगे ! लेकिन उन्होंने कोई औपचारिक पत्र नहीं भेजा | इसी दौरान सरकार ने हमारे संस्था के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता कोपा कुंजाम को जेल में डाल दिया, क्योंकि वे गांव-गांव जाकर इस जन सुनवाई में आने के लिए आदिवासियों को सूचित कर रहे थे | उसके बाद पुलिस ने उन बलात्कार पीड़ित लड़कियों एवं उस हाथ कटे हुए डेढ़ साल के बच्चे का भी अपहरण कर लिया, जिसका हाथ सी आर पी एफ के कोबरा बटालियन ने काट दिया था और जिनके बारे में सी.डी. मैंने चिदम्बरम को दी थी |
मैं आज तक नहीं समझ पा रहा हूँ कि पुलिस ने उन्हीं पीडितों का ही अपहरण क्यों किया जिनके बारे में सिर्फ चिदम्बरम जानते थे कि इन लोगों को जन सुनवाई में मेरे द्वारा पेश किया जाएगा | उन्हीं पीड़ितों का अपहरण किसके निर्देश पर किया गया? इन बलात्कार पीड़ित लड़कियों का मुकदमा अदालत में चल रहा था | सरकार अदालत में झूठ बोल रही थी कि ये पुलिस वाले फरार हैं | जब कि ये पुलिस वाले तब से आज तक दोरनापाल थाने में ही रह रहे हैं और सरकार इन्हें नियमित पगार देती है | इन्हीं अपराधी बलात्कारी पुलिस वालों ने ने ४०० अन्य पुलिस बल के साथ अर्थात पूरी राज्य सत्ता के सहयोग से जन सुनवाई से दो सप्ताह पहले इन लड़कियों का अपहरण कर लिया और दोरनापाल थाने में ले जाकर बलात्कार के मामले को अदालत में ले जाने और पुलिस के खिलाफ मुंह खोलने की सजा के तौर पर पांच दिन थाने में भूखा रखकर इन आदिवासी लड़कियों की पिटाई करी | मैंने इस भयानक घटना की सुचना इस देश के गृह सचिव श्री जी के पिल्लई, देश के गृह मंत्री श्री पी.चिदम्बरम, छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव पी जाय उमेन, छत्तीसगढ़ के डी जी पी श्री विश्वरंजन, दंतेवाड़ा में कलेक्टर रीना कंगाले व एस.पी. अमरेश मिश्रा सभी को दी | परन्तु किसी ने उन लड़कियों की कोई मदद नहीं की | पांच दिन थाने में पीटने के बाद इन बलात्कारी पुलिस वालों द्वारा इन चारों लड़कियों को उनके गांव में लाकर गांव के चौराहे पर फेंक दिया गया और गांव वालों को चेतावनी दी गई कि अब अगर उन्होंने दोबारा हिमाँशु से बात करने की जुर्रत भी की तो उनका गांव पूरी तरह जला दिया जाएगा |
याद रखिये इस अत्याचार के चार महीने बाद ही इसी क्षेत्र में छिहत्तर सी आर पी एफ के जवानों को मार डाला गया था | अगर आप कारण और परिणाम की व्याख्या कर सकें तो आपको शायद समझ में आ जाये कि जब हम लोगों को कमज़ोर समझ कर उनके साथ अन्याय करते हैं और उनके लिए न्याय के सारे दरवाजे बंद कर देते हैं तो उसका परिणाम कितना भयानक हो सकता है? खैर इसके बाद समाचार पत्रों में छपा कि छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने आपको पत्र लिखा है कि आप चिदम्बरम को हमारी जन सुनवाई के लिये दंतेवाड़ा आने से रोकें | फिर इन्डियन एक्सप्रेस में छपा कि आपने चिदम्बरम को इस जन सुनवाई में आने से मना कर दिया है | इसी बीच मैंने चिदम्बरम को फोन करके पूछा कि वे अपने आने के विषय में कोई लिखित सूचना क्यों नहीं दे रहें हैं और उन्होंने कहा कि बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों में उनका आना असंभव है | इसी दौरान राज्य शासन ने हमारी संस्था के अधिकांश कार्यकर्ताओं के घर पर जाकर संस्था का काम बंद करने के लिये धमकी देनी शुरू कर दी | और उन आदिवासियों को जेल में डालना शुरू कर दिया जिनके मामले हमने कोर्ट में दायर किये हुए थे | मेरे चारों तरफ पुलिस ने घेरा डाल दिया | न मैं किसी आदिवासी से मिल सकता था, न कोई मेरे पास आ सकता था | अन्त में एक आदिवासी महिला सोडी सम्बो जिसके पैर में सी आर पी एफ के कोबरा बटालियन ने गोली मार दी थी, हम उसे २ जनवरी २०१० को जब दंतेवाडा से दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय ला रहे थे तो रास्ते में उस महिला का अपहरण पुलिस ने कर लिया और उसके अपहरण का केस मेरे ऊपर लगा दिया | मैं समझ गया कि इन परिस्थितियों में अब मैं आदिवासियों के लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा | और इस तरह राज्य शासन के इस दमन चक्र को उजागर करने के लिए मुझे छत्तीसगढ़ से बाहर आना पड़ा | इस तरह ये स्पष्ट है कि भारत सरकार को हमने ये मौका दिया था कि वो सरकार से नाराज और नक्सलियों के साथ चले गये आदिवासियों से बातचीत कर, उनकी तकलीफें सुनकर, उनका दिल व दिमाग जीतकर उनकी आस्था भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में पैदा करे | परन्तु आपके गृह मंत्री और आपने मिलकर वह अंतिम अवसर गंवा दिया | अब आप कितनी भी कोशिश कर ले, सरकार से नाराज आदिवासी आपके साथ कभी बात नहीं करेंगे, क्योंकि उन आदिवासियों तक पँहुचने का अंतिम पुल बस्तर में हम ही थे जिसे आपने अपने हाथों से तोड़ दिया |
नक्सलियों के पास दो तरह की रणनीति होती है | सैन्य रणनीति और शांति काल की रणनीति | उनके एक कंधे पर बंदूक होती है और दूसरे कंधे पर माओ और मार्क्स की किताबें | जब शत्रु सामने होता है तो वे बंदूक उतार लेते हैं और शत्रु का सामना करते हैं | और जब शांति होती है तो वे दूसरे कंधे से झोला उतार कर जनता को मार्क्सवाद और माओवाद की वैचारिक ट्रेनिंग देते हैं और उन्हें विचार पूर्वक अपने साथ जोड़ते हैं | मैंने चिदम्बरम से कहा था कि भारत सरकार के पास सिर्फ सैन्य रणनीति है | वैचारिक रणनीति नहीं है | आप बस गोली चलाना जानते हैं | आदिवासी का दिल जीतकर सरकार की तरफ कैसे लाया जाय, ये रणनीति आपके पास है ही नहीं | हमने प्रस्ताव दिया था कि आइये भारत शासन के लिए ये करने का अवसर हम आपको देते हैं | इन आदिवासियों की तकलीफें सुनिये, इन्हें न्याय दे दीजिये,इन्हें ये विश्वास दिला दीजिये कि भारत सरकार इन्हें न्याय दे सकती है | परन्तु अफ़सोस, आपने वो अवसर गवां दिया | आपने आदिवासियों को संदेश दिया कि भारत सरकार पीड़ित आदिवासी की तरफ नहीं है | वह बलात्कारी पुलिसवालों के साथ है | वह डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काटने वाली सी आर पी एफ के साथ है | आदिवासी आपके दिल को और आपको ठीक से समझ गया है| लेकिन इस देश के शहरी मध्यमवर्ग को भी समझ में आ जाना चाहिए कि इस देश में अशांति के जिम्मेदार नक्सलवादी नहीं बल्कि ये सरकार है और वर्तमान में चिदम्बरम और मनमोहन सिंह हैं |
आपने सिर्फ मेरे मामले में ही धोखाघड़ी नहीं की बल्कि आपकी सरकार ने सी.पी.आई.(माओइस्ट) के प्रवक्ता आजाद को भी स्वामी अग्निवेश के माध्यम से शांतिवार्ता के लिए बुलाकर धोखाघड़ी करके उनकी हत्या की | अभी किशनजी को भी शांतिवार्ता के जाल में उलझाकर मार डाला गया | इस बात का फ़ैसला तो इतिहास करेगा कि इस संघर्ष में सही कौन था और गलत कौन | परन्तु इस देश को ये तो कम से कम जान ही लेना चाहिए कि देश को इस गृह युद्ध में धकेलने का कार्य आपने ही किया था |
देश में मेहनतकश लोग भुखमरी और बेआवाजी की हालत में हैं | पर ये आपकी चिन्ता का विषय नहीं है | आपकी चिन्ता जी.डी.पी. का आंकड़ा है | अरे जी.डी.पी. तो खनिजों को विदेशियों को बेचकर भी बढ़ाई जा सकती है, परन्तु उससे गरीब की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता | आप इस देश को लगातार जी.डी.पी. की दर का झांसा देकर आदिवासी इलाकों में गृह युद्ध की ज्यादा से ज्यादा भड़का रहे हैं |
यह विश्वास करना कठिन है कि आपको ये नहीं मालूम है कि कैमूर क्षेत्र में पन्द्रह हजार आदिवासी और दलित महिलाओं को जेलों ठूंस दिया गया है | क्या आपको ये नहीं मालूम कि लंदन की कम्पनी वेदांता के लिए ज़मीन हथियाने के मकसद से नियमगिरी की पहाड़ी पर रहने वाले लगभग दस हजार आदिवासियों में से लगभग प्रत्येक पर पुलिस ने फर्जी केस लगा दिये गये हैं ताकि ये लोग डर कर कभी जंगल से बाहर ही न निकल पायें और जंगल में ही इलाज के बिना मर जायें | क्या आपको यह नहीं पता कि उड़ीसा में जगातिन्घपुर में दक्षिण कोरिया की कम्पनी पोस्को के लिये गांव वालों की जमीन छीनने के लिये भेजी गई पुलिस को रोकने के लिये औरतें और बच्चे गर्म रेत पर लेटे रहे और आज भी उन तीन गावों के हर स्त्री पुरुष पर पुलिस ने फर्जी केस दर्ज कर दिये गये हैं और वहाँ की महिलाएं बच्चे के प्रसव के लिये भी अस्पताल नहीं जा सकतीं | और आपको यह भी ज़रूर मालूम होगा कि सलवा जुडूम के नाम पर भारत के आदिवासियों का सबसे बड़ा नरसंहार आप ही के शासनकाल में किया गया ! क्या यही आजादी है ? क्या शहीदों नें कल्पना भी की होगी कि जिस देश को वो एक ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से मुक्त कराने के लिये फांसी पर चढ़ रहे हैं, वह देश आजादी के ६४ साल के भीतर ही अनेकों विदेशी कम्पनियों का गुलाम हो जायेगा ? लोगों के सामने इंसाफ पाने और अपनी बात कहने के सारे रास्ते बंद हैं | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के साफ़ साफ़ मामले हैं, वो कहता है कि "कभी कभी फर्जी मुठभेड़ जरूरी है |" राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को डेढ़ साल के बच्चे का हाथ सरकारी सुरक्षा बलों द्वारा काट दिया जाना बाल अधिकारों का हनन लगता ही नहीं ! सोनी सोरी नाम की आदिवासी शिक्षिका के गुप्तांगो में एक जिले का एस पी पत्थर भर देता है लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग के कान पर जूँ भी नहीं रेंगती ?
जिस देश में करोड़ों मेहनतकश लोग भुखमरी की हालत में जी रहे हों और जहां आराम से बैठकर अमीरों का एक छोटा सा तबका बेशर्म और अश्लील अमीरी में रह रहा हो | वहीं आपने इन करोड़ों भूख से मरते मेहनतकश लोगों के लिए आवाज उठाने को अपराध घोषित कर दिया है | आज देश में तकलीफ में कौन है? मेहनत करनेवाला मजदूर, खून पसीना बहाने वाला किसान, सारा उत्पादक काम करनेवाले दलित | जंगलों में रहने वाले आदिवासी | याद रखिये ये लोग इसलिये गरीब नहीं हैं क्योंकि ये मेहनत नहीं करते बल्कि ये इसलिये गरीब हैं क्योंकि देश की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था उन्हें गरीब रखती है | और जो लोग इस अन्यायपूर्ण और उल्टी व्यवस्था की ठीक करने और उसे सीधा करने का कार्य कर रहे हैं, वो क्रांतिकारी लोग अपराधी हैं? देश की जेलें समाज में फैले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों से भरी पड़ी हैं | ये एक भयानक दौर है | देश के करोडों कमजोर लोगों के जीवन के संसाधन छीन कर आप अंतर्राष्ट्रीय अमीरों को देने के सौदे कर रहे हैं और इस लूट का विरोध करने वाले गरीबों को बर्बर तरीकों से कुचलने के लिए देश के उन सुरक्षा बलों को लगातार गरीबों के गावों में भेजते जा रहे हैं, जिन्हें संविधान के द्वारा दरअसल इन गरीबों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया था |
यह स्तिथी लंबे समय तक नहीं चलेगी ! कुछ लोगों की अय्याशी के लिये करोड़ों लोगों को तिल तिल कर मरने के लिये मजबूर कर देने वाली इस व्यवस्था को लोग हमला कर के नष्ट कर देंगे ! और ऐसा करना उनका नैसर्गिक कर्तव्य भी है ! चाहे इसे अमीरों द्वारा बनाये गये कितने भी आभिजात्य क़ानूनों के द्वारा कितना भी बड़ा अपराध घोषित कर दिया जाए !
मैं आपको ये खुला पत्र इसलिए लिख रहा हूँ ताकि देश को यह पता चल जाये कि देश के आदिवासी इलाकों को युद्ध में झोंकने के लिए कौन जिम्मेदार है! और आपने इस मामले में देश के साथ क्या क्या धोखा किया है | जब जब सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार व नक्सलियों के बीच शांति स्थापना की कोशिश की तो हर बार किस तरह आपने उसे नष्ट किया ? आपकी सरकार के गृह मंत्री पी० चिदम्बरम जो अनेकों व्यापारिक समूहों के पक्ष में सरकार के विरुद्ध मुकदमें लड़ते रहे और वेदांता नामक बदनाम कम्पनी के बोर्ड मेम्बर थे | इन्ही पी० चिदम्बरम ने नवम्बर २००९ में तहलका नामक पत्रिका में एक इंटरव्यू में कहा था कि "हाँ अगर कोई संस्था दंतेवाडा में जन सुनवाई का आयोजन करती है तो मैं वहाँ आदिवासियों की तकलीफें सुनने के लिए दंतेवाडा जाने को तैयार हूँ |" पी चिदम्बरम की इस घोषणा के बाद मैं, श्री चिदम्बरम से नवम्बर २००९ में दिल्ली में उनके निवास पर मिला, जहां हमारी लगभग ४५ मिनट अकेले में बातचीत हुई | इस बातचीत में चिदम्बरम ने मुझसे वादा किया मैं दंतेवाडा में सात जनवरी २०१० को एक जन सुनवाई का आयोजन करूँगा, जिसमें हिंसा से पीड़ित आदिवासी आयेंगे और श्री पी चिदम्बरम उसमें शामिल होकर आदिवासियों की तकलीफें सुनेंगे | मैंने इस मुलाकात में श्री चिदम्बरम को एक सी.डी. सौंपी थी जिसमें पुलिसकर्मियों द्वारा किये गये सामूहिक बलात्कार पीड़ित लड़कियों के बयान थे तथा सी आर पी एफ द्वारा डेढ़ साल के हाथ कटे बच्चे का चित्र व उसकी दादी द्वारा दिया गया घटना का विवरण भी था |
इसके बाद मैंने चिदम्बरम से कहा कि आप अपने आने का एक पत्र हमें भेज दे ताकि आपका कार्यक्रम पक्का मान लिया जाये | श्री चिदम्बरम ने मेरे हर फोन पर मुझे आश्वस्त किया कि वो ज़रूर आयेंगे ! लेकिन उन्होंने कोई औपचारिक पत्र नहीं भेजा | इसी दौरान सरकार ने हमारे संस्था के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता कोपा कुंजाम को जेल में डाल दिया, क्योंकि वे गांव-गांव जाकर इस जन सुनवाई में आने के लिए आदिवासियों को सूचित कर रहे थे | उसके बाद पुलिस ने उन बलात्कार पीड़ित लड़कियों एवं उस हाथ कटे हुए डेढ़ साल के बच्चे का भी अपहरण कर लिया, जिसका हाथ सी आर पी एफ के कोबरा बटालियन ने काट दिया था और जिनके बारे में सी.डी. मैंने चिदम्बरम को दी थी |
मैं आज तक नहीं समझ पा रहा हूँ कि पुलिस ने उन्हीं पीडितों का ही अपहरण क्यों किया जिनके बारे में सिर्फ चिदम्बरम जानते थे कि इन लोगों को जन सुनवाई में मेरे द्वारा पेश किया जाएगा | उन्हीं पीड़ितों का अपहरण किसके निर्देश पर किया गया? इन बलात्कार पीड़ित लड़कियों का मुकदमा अदालत में चल रहा था | सरकार अदालत में झूठ बोल रही थी कि ये पुलिस वाले फरार हैं | जब कि ये पुलिस वाले तब से आज तक दोरनापाल थाने में ही रह रहे हैं और सरकार इन्हें नियमित पगार देती है | इन्हीं अपराधी बलात्कारी पुलिस वालों ने ने ४०० अन्य पुलिस बल के साथ अर्थात पूरी राज्य सत्ता के सहयोग से जन सुनवाई से दो सप्ताह पहले इन लड़कियों का अपहरण कर लिया और दोरनापाल थाने में ले जाकर बलात्कार के मामले को अदालत में ले जाने और पुलिस के खिलाफ मुंह खोलने की सजा के तौर पर पांच दिन थाने में भूखा रखकर इन आदिवासी लड़कियों की पिटाई करी | मैंने इस भयानक घटना की सुचना इस देश के गृह सचिव श्री जी के पिल्लई, देश के गृह मंत्री श्री पी.चिदम्बरम, छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव पी जाय उमेन, छत्तीसगढ़ के डी जी पी श्री विश्वरंजन, दंतेवाड़ा में कलेक्टर रीना कंगाले व एस.पी. अमरेश मिश्रा सभी को दी | परन्तु किसी ने उन लड़कियों की कोई मदद नहीं की | पांच दिन थाने में पीटने के बाद इन बलात्कारी पुलिस वालों द्वारा इन चारों लड़कियों को उनके गांव में लाकर गांव के चौराहे पर फेंक दिया गया और गांव वालों को चेतावनी दी गई कि अब अगर उन्होंने दोबारा हिमाँशु से बात करने की जुर्रत भी की तो उनका गांव पूरी तरह जला दिया जाएगा |
याद रखिये इस अत्याचार के चार महीने बाद ही इसी क्षेत्र में छिहत्तर सी आर पी एफ के जवानों को मार डाला गया था | अगर आप कारण और परिणाम की व्याख्या कर सकें तो आपको शायद समझ में आ जाये कि जब हम लोगों को कमज़ोर समझ कर उनके साथ अन्याय करते हैं और उनके लिए न्याय के सारे दरवाजे बंद कर देते हैं तो उसका परिणाम कितना भयानक हो सकता है? खैर इसके बाद समाचार पत्रों में छपा कि छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने आपको पत्र लिखा है कि आप चिदम्बरम को हमारी जन सुनवाई के लिये दंतेवाड़ा आने से रोकें | फिर इन्डियन एक्सप्रेस में छपा कि आपने चिदम्बरम को इस जन सुनवाई में आने से मना कर दिया है | इसी बीच मैंने चिदम्बरम को फोन करके पूछा कि वे अपने आने के विषय में कोई लिखित सूचना क्यों नहीं दे रहें हैं और उन्होंने कहा कि बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों में उनका आना असंभव है | इसी दौरान राज्य शासन ने हमारी संस्था के अधिकांश कार्यकर्ताओं के घर पर जाकर संस्था का काम बंद करने के लिये धमकी देनी शुरू कर दी | और उन आदिवासियों को जेल में डालना शुरू कर दिया जिनके मामले हमने कोर्ट में दायर किये हुए थे | मेरे चारों तरफ पुलिस ने घेरा डाल दिया | न मैं किसी आदिवासी से मिल सकता था, न कोई मेरे पास आ सकता था | अन्त में एक आदिवासी महिला सोडी सम्बो जिसके पैर में सी आर पी एफ के कोबरा बटालियन ने गोली मार दी थी, हम उसे २ जनवरी २०१० को जब दंतेवाडा से दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय ला रहे थे तो रास्ते में उस महिला का अपहरण पुलिस ने कर लिया और उसके अपहरण का केस मेरे ऊपर लगा दिया | मैं समझ गया कि इन परिस्थितियों में अब मैं आदिवासियों के लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा | और इस तरह राज्य शासन के इस दमन चक्र को उजागर करने के लिए मुझे छत्तीसगढ़ से बाहर आना पड़ा | इस तरह ये स्पष्ट है कि भारत सरकार को हमने ये मौका दिया था कि वो सरकार से नाराज और नक्सलियों के साथ चले गये आदिवासियों से बातचीत कर, उनकी तकलीफें सुनकर, उनका दिल व दिमाग जीतकर उनकी आस्था भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में पैदा करे | परन्तु आपके गृह मंत्री और आपने मिलकर वह अंतिम अवसर गंवा दिया | अब आप कितनी भी कोशिश कर ले, सरकार से नाराज आदिवासी आपके साथ कभी बात नहीं करेंगे, क्योंकि उन आदिवासियों तक पँहुचने का अंतिम पुल बस्तर में हम ही थे जिसे आपने अपने हाथों से तोड़ दिया |
नक्सलियों के पास दो तरह की रणनीति होती है | सैन्य रणनीति और शांति काल की रणनीति | उनके एक कंधे पर बंदूक होती है और दूसरे कंधे पर माओ और मार्क्स की किताबें | जब शत्रु सामने होता है तो वे बंदूक उतार लेते हैं और शत्रु का सामना करते हैं | और जब शांति होती है तो वे दूसरे कंधे से झोला उतार कर जनता को मार्क्सवाद और माओवाद की वैचारिक ट्रेनिंग देते हैं और उन्हें विचार पूर्वक अपने साथ जोड़ते हैं | मैंने चिदम्बरम से कहा था कि भारत सरकार के पास सिर्फ सैन्य रणनीति है | वैचारिक रणनीति नहीं है | आप बस गोली चलाना जानते हैं | आदिवासी का दिल जीतकर सरकार की तरफ कैसे लाया जाय, ये रणनीति आपके पास है ही नहीं | हमने प्रस्ताव दिया था कि आइये भारत शासन के लिए ये करने का अवसर हम आपको देते हैं | इन आदिवासियों की तकलीफें सुनिये, इन्हें न्याय दे दीजिये,इन्हें ये विश्वास दिला दीजिये कि भारत सरकार इन्हें न्याय दे सकती है | परन्तु अफ़सोस, आपने वो अवसर गवां दिया | आपने आदिवासियों को संदेश दिया कि भारत सरकार पीड़ित आदिवासी की तरफ नहीं है | वह बलात्कारी पुलिसवालों के साथ है | वह डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काटने वाली सी आर पी एफ के साथ है | आदिवासी आपके दिल को और आपको ठीक से समझ गया है| लेकिन इस देश के शहरी मध्यमवर्ग को भी समझ में आ जाना चाहिए कि इस देश में अशांति के जिम्मेदार नक्सलवादी नहीं बल्कि ये सरकार है और वर्तमान में चिदम्बरम और मनमोहन सिंह हैं |
आपने सिर्फ मेरे मामले में ही धोखाघड़ी नहीं की बल्कि आपकी सरकार ने सी.पी.आई.(माओइस्ट) के प्रवक्ता आजाद को भी स्वामी अग्निवेश के माध्यम से शांतिवार्ता के लिए बुलाकर धोखाघड़ी करके उनकी हत्या की | अभी किशनजी को भी शांतिवार्ता के जाल में उलझाकर मार डाला गया | इस बात का फ़ैसला तो इतिहास करेगा कि इस संघर्ष में सही कौन था और गलत कौन | परन्तु इस देश को ये तो कम से कम जान ही लेना चाहिए कि देश को इस गृह युद्ध में धकेलने का कार्य आपने ही किया था |
देश में मेहनतकश लोग भुखमरी और बेआवाजी की हालत में हैं | पर ये आपकी चिन्ता का विषय नहीं है | आपकी चिन्ता जी.डी.पी. का आंकड़ा है | अरे जी.डी.पी. तो खनिजों को विदेशियों को बेचकर भी बढ़ाई जा सकती है, परन्तु उससे गरीब की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता | आप इस देश को लगातार जी.डी.पी. की दर का झांसा देकर आदिवासी इलाकों में गृह युद्ध की ज्यादा से ज्यादा भड़का रहे हैं |
यह विश्वास करना कठिन है कि आपको ये नहीं मालूम है कि कैमूर क्षेत्र में पन्द्रह हजार आदिवासी और दलित महिलाओं को जेलों ठूंस दिया गया है | क्या आपको ये नहीं मालूम कि लंदन की कम्पनी वेदांता के लिए ज़मीन हथियाने के मकसद से नियमगिरी की पहाड़ी पर रहने वाले लगभग दस हजार आदिवासियों में से लगभग प्रत्येक पर पुलिस ने फर्जी केस लगा दिये गये हैं ताकि ये लोग डर कर कभी जंगल से बाहर ही न निकल पायें और जंगल में ही इलाज के बिना मर जायें | क्या आपको यह नहीं पता कि उड़ीसा में जगातिन्घपुर में दक्षिण कोरिया की कम्पनी पोस्को के लिये गांव वालों की जमीन छीनने के लिये भेजी गई पुलिस को रोकने के लिये औरतें और बच्चे गर्म रेत पर लेटे रहे और आज भी उन तीन गावों के हर स्त्री पुरुष पर पुलिस ने फर्जी केस दर्ज कर दिये गये हैं और वहाँ की महिलाएं बच्चे के प्रसव के लिये भी अस्पताल नहीं जा सकतीं | और आपको यह भी ज़रूर मालूम होगा कि सलवा जुडूम के नाम पर भारत के आदिवासियों का सबसे बड़ा नरसंहार आप ही के शासनकाल में किया गया ! क्या यही आजादी है ? क्या शहीदों नें कल्पना भी की होगी कि जिस देश को वो एक ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी से मुक्त कराने के लिये फांसी पर चढ़ रहे हैं, वह देश आजादी के ६४ साल के भीतर ही अनेकों विदेशी कम्पनियों का गुलाम हो जायेगा ? लोगों के सामने इंसाफ पाने और अपनी बात कहने के सारे रास्ते बंद हैं | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के साफ़ साफ़ मामले हैं, वो कहता है कि "कभी कभी फर्जी मुठभेड़ जरूरी है |" राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को डेढ़ साल के बच्चे का हाथ सरकारी सुरक्षा बलों द्वारा काट दिया जाना बाल अधिकारों का हनन लगता ही नहीं ! सोनी सोरी नाम की आदिवासी शिक्षिका के गुप्तांगो में एक जिले का एस पी पत्थर भर देता है लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग के कान पर जूँ भी नहीं रेंगती ?
जिस देश में करोड़ों मेहनतकश लोग भुखमरी की हालत में जी रहे हों और जहां आराम से बैठकर अमीरों का एक छोटा सा तबका बेशर्म और अश्लील अमीरी में रह रहा हो | वहीं आपने इन करोड़ों भूख से मरते मेहनतकश लोगों के लिए आवाज उठाने को अपराध घोषित कर दिया है | आज देश में तकलीफ में कौन है? मेहनत करनेवाला मजदूर, खून पसीना बहाने वाला किसान, सारा उत्पादक काम करनेवाले दलित | जंगलों में रहने वाले आदिवासी | याद रखिये ये लोग इसलिये गरीब नहीं हैं क्योंकि ये मेहनत नहीं करते बल्कि ये इसलिये गरीब हैं क्योंकि देश की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था उन्हें गरीब रखती है | और जो लोग इस अन्यायपूर्ण और उल्टी व्यवस्था की ठीक करने और उसे सीधा करने का कार्य कर रहे हैं, वो क्रांतिकारी लोग अपराधी हैं? देश की जेलें समाज में फैले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों से भरी पड़ी हैं | ये एक भयानक दौर है | देश के करोडों कमजोर लोगों के जीवन के संसाधन छीन कर आप अंतर्राष्ट्रीय अमीरों को देने के सौदे कर रहे हैं और इस लूट का विरोध करने वाले गरीबों को बर्बर तरीकों से कुचलने के लिए देश के उन सुरक्षा बलों को लगातार गरीबों के गावों में भेजते जा रहे हैं, जिन्हें संविधान के द्वारा दरअसल इन गरीबों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया था |
यह स्तिथी लंबे समय तक नहीं चलेगी ! कुछ लोगों की अय्याशी के लिये करोड़ों लोगों को तिल तिल कर मरने के लिये मजबूर कर देने वाली इस व्यवस्था को लोग हमला कर के नष्ट कर देंगे ! और ऐसा करना उनका नैसर्गिक कर्तव्य भी है ! चाहे इसे अमीरों द्वारा बनाये गये कितने भी आभिजात्य क़ानूनों के द्वारा कितना भी बड़ा अपराध घोषित कर दिया जाए !
पूरा पत्र पढा। इतना कुछ हुआ, पता नहीं था... ...
ReplyDeleteलेकिन हमें नहीं लगता कि पत्र लिखना जैसे काम इस सरकार के साथ अब होने चाहिए... ... इस मौके पर चे याद आते हैं... ... छापामार युद्ध... ...
आदिवासी समझ गये कि सच क्या है... ... यह आवश्यक था, एकदम जरूरी था... ...
सरकार चाहे किसी राज्य की हो या भारत देश की... ... सब है तो कुक्कुरों की ही... ...
ReplyDeleteक्या आप मुझे बताएँगे की आप यह पत्र नौटंकी .केंद्र सरकार कोसंबोधित करके क्यों कर रहे हैं ..क्या छत्तीस गढ़ मे सरकार नही है ..क्या रमांजी ने आप का मूह भर दिया है ..क्या आप बताएँगे की रमण सरकार के सन्दर्भ मे आप क्या सोचते हैं ..क्या नक्सली समस्या सीधे केंद्र डील करती है .क्या रमण की कोई भूमिका नही ..आप का पत्र इन उत्तरों के बुईंा केवल और केवल रमण की खैरख़्वाही है जिसमे आप केंद्र को कटघरे मे खड़ा करना चाह रहे है . चिदंबरम क्यों नानकिराम क्यों नही .मनमोहन क्यों रमण क्यों नही ..
रमन सिंह की शिकायत लेकर ही तो हम दिल्ली की सरकार के पास आये थे . रमन सिंह तो जो कर रहा है वह तो सबको पता ही चल चुका था . हमको लगा कि शायद दिल्ली में बैठे गृह मंत्री और प्रधान मंत्री को यह सब ना पता हो .
Deleteवैसे यह सब चिदम्बरम के उस साक्षात्कार के बाद शुरू हुआ जिसमे उसने कहा था कि वह छत्तीसगढ़ में जन सुनवाई के लिये आने को तैयार हैं .
इंटरव्यू पढ़िए -
http://archive.tehelka.com/story_main43.asp?filename=Ne211109coverstory.asp
मई क्या कहूँ कुछ समझ में ही नहीं आ रहा .................
ReplyDeleteमैं क्या लिखूं कुछ समझ में ही नहीं आ रहा ...............
ReplyDeletehttp://rtrrecommendations.wordpress.com/2012/09/01/61reducing-naxalite-problem/
ReplyDeletesalam adiwasio ki kranti ko
ReplyDeleteभाई साहब! ये सब बाते हमें शायद कभी पता ही नहीं चलती जो आपने बताई है। हम तो छत्तीसगढ़ के बाहर रहते हैं मीडिया के जरिए सिर्फ नक्सली हमलों की खबरें पढ़ते हैं और सुनते हैं। असल कहानी तो आपका ब्लॉग पढ़ कर समझ में आई है। सरकार, पुलिस पर तो फिर भी ठीक है लेकिन कानून और उसकी पालना करवाने वाली अदालतें भी अगर न्याय नहीं दिला सकती हैं तो आदिवासियों के पास बस एक ही विकल्प है... मैं समझता हूं वह गलत भी नहीं है। आज ही समाचार पढ़ा की पुलिस ने राजनांदगांव के एक 17 वॢषय किशोर को नक्सली बता कर गिरफ्तार किया है। भगवान जाने वह भी सरकार और पुलिस की नई साजिश का शिकार तो नहीं...?
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