Saturday, February 11, 2012

आप मेरे इस पत्र को याचिका के रूप में स्वीकार कर लें

मुख्य न्यायाधीश,
सर्वोच्च न्यायालय,
नई दिल्ली

आदरणीय जज साहब ,
यह पत्र मैं आपका ध्यान छत्तीसगढ़ में निचली अदालतों द्वारा कमजोर आदिवासियों के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता का साफ़ साफ़ उलंघन तथा इस प्रकार उन्हें न्याय मिलने से जान बूझ कर वंचित किये जाने के मामले में लिख रहा हूं ! मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप मेरे इस पत्र को याचिका के रूप में स्वीकार कर लें ! ताकि न्याय के अभाव में हताशा के कारण पैदा होने वाली सामजिक अशांति को कम किया जा सके !
महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि हमें भारत का विकास करना है तो हमें गावों का विकास करना होगा ! मैंने और मेरी पत्नी ने आज से उन्नीस साल पहले गांधी जी द्वारा युवकों को दिये गये इस सूत्र से प्रेरित होकर दिल्ली छोडकर छत्तीसगढ़ के जिले दंतेवाड़ा जाकर १९९२ में आदिवासियों के एक गाँव में रहना शुरू किया था ! हम आदिवासियों की सेवा के विभिन्न कार्य करते रहे ! हमारे कार्य को देख कर जिला न्यायालय ने हमारी संस्था को जिला विधिक प्राधिकरण का सदस्य नियुक्त किया था ! इसके लिये हमारे द्वारा जिला जज साहब के निर्देशन व उपस्थिती में आदिवासियों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी देने के अनेकों कार्यक्रम चलाए जाते थे !
२००९ में छह आदिवासी लड़कियों ने हमारी संस्था के कार्यकर्ताओं से मुफ्त कानूनी सहायता के लिये सम्पर्क किया ! उन लड़कियों ने हमें बताया कि उनके साथ पुलिस कर्मियों , विशेष पुलिस अधिकारियों तथा शासन के सहयोग से चलाए जाने वाले सलवा जुडूम के नेताओं ने अलग अलग घटनाओं में सामूहिक बलात्कार किया है ! उन आदिवासी बालिकाओं ने हमें यह भी बताया कि उनके द्वारा पुलिस थाने में शिकयत दर्ज कराने की कोशिश भी की गई थी ! परन्तु चूंकि बलात्कारी पुलिस कर्मी ही थे तथा एक मामले में तो थानेदार भी आरोपी है ! इसलिए इन पीड़ित लड़कियों की शिकयत थाने में दर्ज नहीं की गयी थी ! हमारे द्वारा इस मामले में जिले के एस पी को इन बालिकाओं की शिकायत भेजी गयी ! परन्तु उन्होंने उन शिकायती पत्रों का कोई उत्तर नहीं दिया और कोई कार्यवाही भी नहीं की ! इसके बाद क़ानून के अनुसार उन बलात्कार पीड़ित आदिवासी लड़कियों ने अदालत में शिकयत दर्ज कराई ! कानूनी प्रक्रियाओं के बाद सक्षम न्यायालय द्वारा ३० अक्टूबर को २००९ को आरोपी पुलिस वालों, विशेष पुलिस अधिकारियों तथा सलवा जुडूम के नेताओं की गिरफ्तारी के गैर ज़मानती वारंट जारी कर दिये गये ! बलात्कार के जिन आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट हैं उनकी सूची नीचे दे रहा हूं











अदालत में पुलिस विभाग ने असत्य बोला और कहा कि जिन पुलिस वालों , विशेष पुलिस अधिकारियों तथा सलवा जुडूम के नेताओं के खिलाफ वारंट जारी किये गये हैं वे "सभी फरार हैं और इनके निकट भविष्य मिलने की कोई सम्भावना नहीं है !" जबकि ये सभी आरोपी तब से आज तक पुलिस की नौकरी करते हैं ! सरकार इन्हें लगातार वेतन भी देती है ! उक्त आरोपियों में से एक आरोपी बोडडू राजा छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की जिला पंचायत का वर्तमान उपाध्यक्ष भी है ! अभी हाल ही में ०९/०२/२०१२ को ही एक आरोपी पुलिस कर्मी कर्तम सूर्या की एक हादसे में मृत्यु हुई है ! दूसरा एक और आरोपी किच्चे नंदा भी इस हादसे में घायल हुआ है ! हादसे के समय ये दोनों " फरार " आरोपी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के साथ उनकी जीप में थे !
जब कोई आरोपी फरार हो जाता है ! तब न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा ८२,८३,व ८४ के अंतर्गत कार्यवाही करता है ! इसमें सार्वजनिक नोटिस , फरार आरोपियों की सम्पत्ती कुर्क करना , उनकी सेवा समाप्ति की कार्यवाही करना किया जाता है ! हम आज तक नहीं समझ पा रहे हैं कि दंतेवाड़ा जिला न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता का पालन क्यों नहीं किया ?
हम मानते हैं कि कोई व्यक्ति गलती करे तो हम सरकार या पुलिस के पास जाकर शिकायत करते हैं ! सरकार या पुलिस गलती करे तो हम अदालत में न्याय मांगने जा सकते हैं ! लेकिन अगर न्यायालय अन्याय करे तब लोग कहाँ जाएँ ?
न्यायालय द्वारा इन आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही न करने के बाद, इन लड़कियों की मदद करने वाले हमारी संस्था के कार्यकर्ताओं को, इन लड़कियों की मदद करने की सजा के तौर पर, पुलिस ने फर्जी मामले बना कर जेल में डाल दिया ! वो आज भी जेल में हैं ! १९ दिसम्बर २००९ को इन " फरार " घोषित आरोपी पुलिस कर्मियों द्वारा, पूरी राजसत्ता के सहयोग से, एक बड़े पुलिस दल को साथ ले जाकर, अदालत में जाने की सजा के तौर पर, इन पीड़ित लड़कियों का दुबारा अपहरण कर लिया गया ! इन लड़कियों को पांच दिन तक दोरनापाल थाने में भूखा रख कर पीटा गया और कोरे कागजों पर हस्ताक्षर कराए गये ! और बाद में उन लड़कियों को गाँव में चौराहे पर पूरे गाँव वालों के सामने फेंक दिया गया ! और दुबारा अदालत में जाने पर गाँव को जला दिये जाने की धमकी दी गई !सरकार ने हमारे आश्रम को बुलडोजर चलाकर तोड़ दिया गया और जनवरी २०१० में हमें छत्तीसगढ़ छोड़ कर बाहर आना पड़ा !
अगर आदिवासियों के साथ ये सब होगा ! आदिवासियों को भारत के लोकतंत्र , न्याय प्रणाली , व समानता का अनुभव अगर नहीं होगा ! उनकी बेटियों के साथ बलात्कार करने पर अदालतें भी सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं करेंगी तो आदिवासियों के पास अपने सम्मान व जीवन की रक्षा करने का क्या रास्ता बचता है ? अगर हमने आज इन प्रश्नों से मुंह चुराया और आदिवासियों को भारत के संविधान में लिखे गये समता व् न्याय से वंचित रखा ! उनके द्वारा उठाई गई न्याय की गुहार को बंदूक से ही दबाया तो मुझे भय है कि आदिवासियों का एक बड़ा तबका ये मानने लगेगा कि ये व्यवस्था उन्हें न्याय दे ही नहीं सकती ! तथा ये स्तिथी हमारे राष्ट्रीय जीवन में अशांति का कारण बन सकती है !
हम आप से इस मामले में न्याय की मांग करते हैं !

2 comments:

  1. Himanshu ji has placed before all of us the heart-rending plight of the Adivasi community in general and adivasi women in particular. Can an advocacy effort be made for these women as it was done for Dr.Binayak Sen?
    Stan Swamy

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  2. अन्तर्मन से धन्यवाद आपको आदरणीय !जो कि पूरे छत्तीसगढ् मे एक ऐसे साह्सी वीर व्यक्तित्व है जो जन चेतना के सच्चे सम्वाहक बन कर ऊभरे है आपके कर्तव्य निष्ठा साहस और हिम्मत को बारम्बार प्रणाम है आपने जो चिन्गारी फूकी है ऐसे हत्यारो बर्बर क्रुरो आतताईयो को जला कर राख कर देगी इन्ही कामनाओ के साथ

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