Thursday, May 3, 2012

और आदिवासी हट नहीं रहा है अपनी जमीन से



क्या आप बिना कार के जी सकते हैं?
या बिना ए.सी. के?
बिना पक्के मकान के?
बिना बड़ी नौकरी, बिना शॉपिंग मॉल
या बिना मल्टीप्लेक्स के?
या बिना एक बड़ी तनख्वाह,
बिना महंगे पब्लिक स्कूल के?
और इन सब के ना होने को
आप विकास मानेंगे क्या?
तो आपके इस विकास के लिये
चाहिये सीमेंट, लोहा, बिजली, 
जंगल, पानी, ताम्बा, एल्युमिनियम |
और ये सब मिलता है वहाँ,
जहाँ रहता है आदिवासी |
और आदिवासी हट नहीं रहा है अपनी जमीन से |
इसलिये उसे हटाने को उसकी जमीन से ,
तुमने भेजी पुलिस वहाँ पर |
नक्सल घोषित किया उसे और
गांव जलाये उसके
बच्चे मारे उसके
बेटी की अस्मत लूटी !
तुम चुप रहे |
मूँह फेर कर टीवी पर
क्रिकेट पिक्चर देखते रहे |
तुमने सोंचा मर जायेगा आदिवासी,
पुलिस तुम्हारी लूट लायेगी उसका माल,
बैठ कर मजे उड़ाओगे तुम |

पर हुआ धमाका
आयी लाशें जंगल से
तुम्हारी पुलिस की वापिस !

अब घबराये हो तुम |
छाती पीट रहे हो,
दे रहे हो दुहाई लोकतंत्र की,
बापू के आदर्शों की,
तुम जब मार रहे थे
जंगल के इस वासी को
तब याद नहीं था लोकतंत्र
और बापू तुमको?

याद रखो
ये देश एक है
इसकी धरती एक है
इसके लोग एक हैं
इसकी जान एक है
तुम इसके एक अंग पर चोट करोगे
तड़पेगा पूरा जिस्म इस मुल्क का |
मत सोचो इसके पैर काटकर
सिर आनंद करेगा |
जैसा बोओगे,
वैसा काटोगे
बंदूक बोओगे
गोलियां खाओगे,
मान लो अभी वक्त है !

सबका मुल्क बराबर है यह,
सबकी रोटी,
सबको शिक्षा,
जंगल सबके,
इज्जत सबको |
गर नहीं मिला सबको यह
तो झगड़ा होगा |

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