विनोबा भावे ने आज़ादी के बाद भूमि समस्या के कारण तेलंगाना में किसानों और ज़मींदारों के बीच हिंसा शुरू होने पर भूदान आन्दोलन शुरू किया .
विनोबा कहते थे कि क्रांति तीन तरीकों से होती है , कानून - करुणा या क़त्ल से .
विनोबा कहते थे कानून का असर दिल पर नहीं होता इसलिए कानून से समाज नहीं बदलता . इसलिए करुणा और समझदारी से समाज को बदलना चाहिए .
लेकिन अगर समाज की समझदारी नहीं जागेगी तो फिर लोग अन्याय मिटाने के लिए हथियार उठा लेंगे , फिर क़त्ल का रास्ता लोग अपना लेंगे.
इसलिए मैं समाज की समझदारी जगाने के लिए मैं काम करूंगा .
फिर विनोबा ने अस्सी हज़ार किलोमीटर पैदल यात्रा करी . विनोबा को पैंतालीस लाख एकड़ ज़मीन दान में मिली जिसमे से तैंतीस लाख एकड़ ज़मीन भूमिहीनों बाँट दी गयी थी .
विनोबा कहते थे कि या तो अपने गाँव के लोगों को प्रेम से ज़मीन दे दो नहीं तो गरीब अपना हक़ आपकी गर्दन काट कर ले लेगा .
विनोबा कहते थे मैं आपसे भीख नहीं मांग रहा हूँ मैं असल में आपकी जान बचा रहा हूँ .
उत्तर प्रदेश में हमीरपुर जिले के मंगरौठ गाँव के लोगों ने पूरी गाँव की ज़मीन विनोबा को दान दे दी . ये व्यक्तिगत स्वामित्व विसर्जन का आज़ाद भारत में पहला प्रयोग था .
विनोबा ने कहा कि मैं तो दीक्षा देने आया था . लेकिन मंगरौठ गाँव के लोगों ने आज मेरी परीक्षा ले ली .
मंगरौठ गाँव के पुनर्निर्माण का प्रयोग शुरू करना था . विनोबा भावे ने इसकी ज़िम्मेदारी मेरे पिता श्री प्रकाश भाई को सौंपी .
मेरे पिता ने उस गाँव में काम करना शुरू किया . इसी बीच मेरे माता पिता की शादी हुई .
शादी के तुरंत बाद मेरे माता पिता ने मंगरौठ गाँव में रहकर काम करना शुरू किया .
गाँव वालों ने श्रमदान करके तीन किलोमीटर लम्बी नहर बनायी . गाँव एक फसली से तीन फसली हुआ .पूर्ण शराबबंदी हुई . अदालत मुक्ति हुई . कोई झगड़ा थाने में नहीं जाता था .
कृष्ण दत्त भट्ट ने " चलो चलें मंगरौठ" नाम से पुस्तक लिखी जिसमे मंगरौठ गाँव की कहानी लिखी गयी .
आज अपने माता पिता से मिलने आया हुआ हूँ . पिताजी चरखा चला रहे हैं .माँ साथ में बैठी हैं .वे आज भी अपने काते हुए सूत के ही कपडे पहनते हैं .
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