Friday, March 20, 2015

सरकार शांति और लोकतंत्र से ही डरती है

छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला .
सरकार आदिवासियों की ज़मीनें छीनने के लिए भारी तादात में सैन्य बलों को तैनात कर रही है .
इन सैन्य बलों को आदिवासी गाँव में तैनात किया जाता है .
देश भर में जहां भी सरकार उद्योगपतियों के लिए ज़मीनें छीनती हैं वहाँ सरकार पहले सैन्य बलों को ही तैनात करती है .
चाहे उस इलाके में नक्सलवादी हों चाहे ना हों .
इस देश में आज़ादी के बाद से आज तक अमीर कंपनियों के लिए कोई भी ज़मीन बिना सरकारी बंदूकों के इस्तेमाल के हड़पी ही नहीं गयी है .
यहाँ तक की दिल्ली के पास नौएडा तक में भारी पुलिस बल तैनात करके गांव वालों को पीट कर औरतों को घसीट कर घरों में घुस कर तोड़ फोड करने के बाद ज़मीन छीनी गयी थी जबकि नौएडा में तो कोई भी नक्सलवादी नहीं था .
आदिवासी इलाकों में यह सैन्य बल आदिवासी महिलाओं से बलात्कार करते हैं . युवकों को फर्ज़ी मामलों में फंसा कर जेलों में डालते हैं .
सैन्य बलों के सिपाही आदिवासियों को पीटते हैं .
आदिवासियों के घरों में घुस कर लूटपाट करते हैं .
ताकि आदिवासी डर जाएँ और सरकार जब ज़मीन छीने तो कोई सरकार के विरुद्ध आवाज़ ना उठा सके
इस तरह की सैंकडों घटनाओं की सूचना हम सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दे चुके हैं .
अनेकों बार सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग सरकार को फटकार भी लगा चुका है .
आज दंतेवाड़ा में फिर से इसी तरह की एक नयी घटना घट रही है .
दंतेवाड़ा ज़िले के अनेकों आदिवासी गावों के सरपंचों और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने परसों कलेक्टर से मिल कर कलेक्टर को एक ज्ञापन दिया .
इन जनप्रतिनिधियों ने कलेक्टर को सूचना दी कि हमारे गाँव में नए सीआरपीएफ कैम्प खोले जा रहे हैं जिनके बारे में इस इलाके के आदिवासियों से कोई राय मशविरा नहीं किया गया है ,
सरकार की इस मनमानी के विरोध में आदिवासी इक्कीस मार्च को एक शांतिपूर्ण रैली करेंगे जिसकी सूचना हम आपको दे रहे हैं .
इस पत्र में जिन सरपंचों और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किये थे उन में से लगभग सभी को आज पुलिस ने घर में घुस कर उठा लिया है .
इन जनप्रतिनिधियों में बड़े बेडमा गाँव के सरपंच शंकर कुंजाम , फूलपाड़ गाँव के सरपंच राहुल वेट्टी, कोरीरास गाँव के सरपंच जोगा , पालनार गाँव के सरपंच सुकालू ,और जनपद पंचायत के सदस्य नंदलाल को पुलिस ने पकड़ लिया है .
सुनने में आया है कि सरकार मानती है कि यह रैली नक्सलियों के कहने से करी जा रही है .
अगर थोड़ी देर के लिए सरकार के दावे को सच मान भी लिया जाय तो भी सरकार का यह कदम मूर्खता से भरा हुआ है .
एक तरफ तो सरकार कहती है कि नक्सली बंदूक छोड़ें और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में शामिल हो जाएँ .
तो रैली करना तो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया ही है .
अगर नक्सली रैली कर रहे हैं तो सरकार को तो खुश होना चाहिये कि चलो नक्सली लोकतान्त्रिक तरीकों में विश्वास कर रहे हैं और शांतिपूर्वक अपनी बात रख रहे हैं .
लेकिन अगर सरकार आदिवासियों को शांतिपूर्वक और लोकतान्त्रिक तरीकों से अपनी बात भी नहीं रखने देगी तो उसका क्या नतीजा होगा ?
सरकार को खुद ही सोचना चाहिये .
अगर आप आदिवासियों को शांतिपूर्ण तरीके से रैली नहीं करने देंगे तो उस इलाके में आपको शांति लाने में मदद मिलेगी या आप अशांती को और भड़का रहे हैं .
असली बात यही है .
सरकार कभी शांती नहीं चाहती .
सरकार शांति और लोकतंत्र से ही डरती है .
सरकार के पास तो सिर्फ बंदूक है ,लाठी है पुलिस है दमन है ताकत है .
सरकार बंदूक का सामना तो बहुत अच्छे से कर लेती है .
लेकिन जब आदिवासी लोकतान्त्रिक और शांतिपूर्ण विरोध करते हैं तो सरकार बेबस हो जाती है
आदिवासियों के शांतिपूर्ण विरोध से सरकार घबरा जाती है .
तब सरकार की सारी दुनिया के सामने पोल खुल जाती है .
इसलिए सरकार आदिवासियों के निहत्थे विद्रोह को कुचलने में लग गयी है .
तो सरकार बहादुर आप आदिवासियों का दमन कीजिये जितनी भी आपकी ताकत है .
आदिवासी उस दमन का जवाब अपनी हिम्मत और एकजुटता से देंगे .
सरकार बहदुर इस दुनिया में आपसे पहले भी बड़े बड़े ज़ालिम आये थे .
लेकिन उन जालिमों का नामो निशान मिट गया .
लेकिन जिन लोगों ने ज़ुल्म के मुखालिफ आवाज़ उठाई वो इतिहास में अमर हो गए .
सरकार बहदुर तुम करो दमन .
दुनिया तुम्हे देख रही है .
दंतेवाडा में दमन करोगे तो सारी दुनिया में उसके खिलाफ़ आवाज़ उठेगी .
देखते हैं इस लड़ाई में जीत किसकी होती है ?
दमन की या आदिवासियों की हिम्मत और न्याय की ?

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