Saturday, May 2, 2015

इसे अपने मुल्क की कहानी मत समझना





ये वो समय था जब 
कंपनियों के लिए ज़मीनों पर कब्ज़े के सिलसिले में 
हज़ारों आदिवासी लडकियां बलात्कार के बाद जेलों में डाल दी गयी थीं 
आदिवासी लड़की के गुप्तांगों में पत्थर डालने का आदेश देने वाले 
एक बार फिर से फूल मालाएं पहन ढोल धमाके के साथ हुक्म देने वाली कुर्सी पर विराजमान हो गए थे . 

अमीर कंपनियों की लूट का विरोध करने वाले 
देशभक्तों को जेल में डालने और उनका क़त्ल करने के लिए उनकी सूचियाँ तैयार करने का काम 
अब सरकारी ख़ुफ़िया एजेंसियां कर रही थीं 
लोक तन्त्र का मतलब चुनाव में वोट डालना भर बताया जा रहा था 
अब चाय की पत्ती बेचने वाली टाटा नाम की एक कम्पनी नौजवानों को लोकतंत्र का असली मतलब बताती थी 
बराबरी और न्याय अब लोकतंत्र के ज़रूरी हिस्से नहीं माने जाते थे 

गाँव के ज़मीनों पर कंपनियों के गुर्गों के ज़ुल्मों की कहानियों से अब नौजवानों 
का खून नहीं खौलता था .
नौजवानों के पास बहुत ज़रूरी काम थे 
नौजवान नस्ल क्रिकेट देखती थी 
और वो उन्ही अमीरों ज़ालिम कंपनियों में नौकरियों के लिए 
बेसब्रे थे 

इसे अपने मुल्क की कहानी मत समझना 
ये कहानी तो दूर बसे किसी अफ्रीकी देश की है 

हम तो महान देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक हैं 



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