Friday, August 8, 2014

भाषा

हर जगह के लोगों को अपने प्राकृतिक संसाधनों को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से इस्तेमाल करते हुए अपनी जिंदगी बिताने का हक है .

हर जगह के लोगों खेती करने , व्यापार करने या उद्योग धंधे करने का हक भी है .

हर जगह के लोगों को अपने ये सारे काम अपनी ही ज़ुबान में करने का भी हक है .

हाँ अगर लोग चाहें तो दूसरी ज़ुबान के लोगों के साथ व्यापार की ज़रूरतों के हिसाब से दूसरी ज़ुबानें सीख सकते हैं .

पुराने व्यापारी भी कई ज़ुबानें बोलते थे .

लेकिन आप किसी देश में डंडे के जोर पर लोगों से यह नहीं कह सकते कि वो अपने मुल्क का सारा काम काज किसी सात समन्दर पार की ज़ुबान में चलायें .

अगर आप अपने मुल्क के लोगों पर इसलिए बंदूकों से गोलियाँ दागें क्योंकि वो लोग अपनी ज़ुबान में अपने देश का काम काज करने की मांग कर रहे हैं तो ये तो आपकी ज़हनी गुलामी की तरफ इशारा कर रहा है .

या फिर सात संदर पार बैठे आपके अमीर व्यापारी आपको ऐसा करने से रोक रहे हैं . क्योंकि उन अँगरेज़ व्यापारियों को डर हो सकता है कि फिर वो इस मुल्क में अपना लूट का धंधा एक दूसरी ज़ुबान में कैसे चला पायेंगे ?

मुखर्जी नगर दिल्ली में युवाओं के सत्याग्रह पर सरकार ने जिस तरह से क्रूरता पूर्वक हमला किया है वो किसी भी तर्क से समझ में नहीं आता .

भारत के लोगों को भारत की जुबानों में अपना काम काज करने देने में मोदी को क्या दिक्कत है ?

कमाल है ये लोग चुनावों से पहले तो मातृभाषा की दुहाइयां देते हैं लेकिन बाद में ठीक उसके उलट आचरण करते हैं .

इस मुद्दे पर चल रहे सत्यग्रह स्थल पर सीमा सुरक्षा बल की तैनाती हमें एक भयानक हालत की तरफ ले जा सकता है .

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